जिम्मेदारों की आंखों पर घूस की पट्टी
नई दिल्ली । हाल ही में राजधानी के रिहायश क्षेत्र में अवैध फैक्ट्री में आग लगी और 11 लोगों की मौत हो गई। कोई नहीं बता पाएगा इनका क्या कुसूर था और इसके पीछे कौन जिम्मेदार है? लेकिन आप इसकी चिंता क्यों करेंगे आपका सीधा कोई सरोकार नहीं। आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि अनदेखी की यही प्रवृत्ति है कि गली-गली में मौत का कारोबार हो रहा है। और उसकी अनदेखी करके हम अपना ही काल बुला रहे हैं। गलती आपकी भी नहीं, सिस्टम ही ऐसा है, शिकायत लेकर जाएं तो कोई सुनता नहीं। नगर निगम के बाबू से ऊपर के अधिकारी तक सबकी चुप्पी है। पुलिस की खामोशी हर माह पहुंचने वाली वसूली से हो जाती है। प्रशासन ने गैर जिम्मेदार तरह से हो रहे इस अवैध कारोबारों पर चुप्पी रहना अपना सिद्धांत बना लिया है। प्रदूषण नियंत्रण से नोटिस आएगा, कुछ दिन बाद उसकी भी खानापूरी हो जाती है। बड़ा सवाल यही है कि सभी जिम्मेदारों की आंखों पर आखिर कब तक घूस की पट्टी बंधी रहेगी? शहर की रिहायश के भीतर कहीं से भी जीवन के लिए घातक साबित होने वाले उद्योग लगते रहेंगे, जिनमे खतरनाक पदार्थों का उपयोग होता है? बड़ी संख्या में लोगों के लिए जानलेवा ऐसी अवैध औद्योगिक या कारोबारी गतिविधियों को आखिर क्यों नहीं रोका जा रहा? सब जिम्मेदार सामने हैं तो कार्रवाई क्यों नहीं हो पा रही? ऐसी खतरनाक अवैध इकाइयों व कारोबारी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए क्यों नहीं हो रहे ठोस उपाय? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है। कभी अवैध फैक्ट्री में लापरवाही की आग से 11 की मौत हो गई, कभी 43 लोग जिंदा जल गए। करोल बाग के होटल अर्पित पैलेस में आग लगने से भी 17 लोग मरे थे। होटल में ठहरे कई अतिथि सोते रह गए, जहरीले धुएं से उनका दम घुट गया। रिहायशी क्षेत्रों में संचालित अवैध औद्योगिक व कारोबारी गतिविधियों के चलते खतरनाक साबित हो रहा यह अंतहीन सिलसिला जारी है