नई दिल्ली: वैज्ञानिक शोधों और आयुर्वेद में कुल्थी की दाल के कई फायदे बताए गए हैं, खासतौर पर किडनी स्टोन (पथरी) को गलाने और हृदय संबंधी बीमारियों को कम करने में इसका विशेष महत्व है। भारत में सदियों से पारंपरिक आहार में शामिल कुल्थी की दाल अब एक सुपरफूड के रूप में पहचानी जा रही है।

प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है और इसे औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। कुल्थी की दाल, जिसे अंग्रेजी में हॉर्स ग्राम कहा जाता है, छोटे-छोटे काले या भूरे रंग के बीजों वाली दाल होती है, जो पोषण का भंडार मानी जाती है। आयुर्वेद के अनुसार, कुल्थी की दाल शरीर में जमा अतिरिक्त कैल्शियम और ऑक्सलेट को घोलने में मदद करती है, जिससे किडनी और पित्ताशय की पथरी को प्राकृतिक रूप से बाहर निकालने में सहायता मिलती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसे रातभर पानी में भिगोकर सुबह इसके पानी का सेवन करने से गुर्दे की पथरी धीरे-धीरे गल सकती है। इसके अलावा, यह पाचन तंत्र को मजबूत करती है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने में सहायक होती है। कुल्थी की दाल में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, आयरन, कैल्शियम, फास्फोरस, एंटीऑक्सीडेंट और अन्य पोषक तत्व होते हैं। इसे नियमित रूप से खाने से हृदय रोग का खतरा कम होता है, क्योंकि यह खराब कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद करती है। इसमें मौजूद फाइबर रक्तचाप को नियंत्रित रखता है और दिल को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

डायबिटीज के मरीजों के लिए भी यह दाल बेहद फायदेमंद मानी जाती है, क्योंकि यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती है। इसके अलावा, यह दाल शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के साथ ही हड्डियों को भी मजबूत बनाती है। इसमें मौजूद आयरन एनीमिया को दूर करने में सहायक है, जिससे खून की कमी पूरी होती है। आयुर्वेद में इसे अस्थमा, सर्दी-खांसी, मोटापा और जोड़ों के दर्द में राहत देने वाली दाल के रूप में भी बताया गया है। कुल्थी की दाल को अंकुरित करके या इसका सूप बनाकर सेवन करना सबसे अधिक फायदेमंद होता है।